29 AUG 2021 FORCE TODAY REPORT
FORCE TODAY COVID 19
केरल में अगले हफ्ते से नाइट कर्फ्यू लागू
केरल में बढ़ते कोरोना केस को देखते हुए राज्य सरकार ने अगले हफ्ते से पूरे प्रदेश में नाइट कर्फ्यू लगाने का ऐलान किया है। देशभर के मुकाबले केरल में ज्यादा नए केस सामने आ रहे हैं। यहां शुक्रवार को 32,801 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, 18,576 ठीक हुए और 179 की मौत हो गई। यह लगातार तीसरा दिन था जब यहां 30 हजार से ज्यादा संक्रमित मिले। पांच दिनों में देश में आए कुल मामलों में से 66% केरल से हैं। फिलहाल राज्य में 1.95 लाख मरीज कोरोना का इलाज करा रहे हैं।
इधर, देश में भी कोरोना के मामलों में फिर अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। शुक्रवार को 46,798 मरीजों की पहचान हुई। यह बीते 58 दिन में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 30 जून को 48,606 केस आए
देश में कोरोना के मामलों में फिर अचानक बढ़ोतरी देखी जा रही है। शुक्रवार को 46,798 मरीजों की पहचान हुई। यह बीते 58 दिन में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 30 जून को 48,606 केस आए थे। इसके साथ ही बीते 24 घंटे में 31,343 मरीजों ने कोरोना को मात दी, जबकि 514 की मौत हो गई। इस तरह एक्टिव केस यानी इलाज करा रहे मरीजों की संख्या में 14,935 की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
केरल में हालात भयावह बने हुए हैं। यहां शुक्रवार को 32,801 मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, 18,576 ठीक हुए और 179 की मौत हो गई। यह लगातार तीसरा दिन था जब यहां 30 हजार से ज्यादा संक्रमित मिले। पांच दिनों में देश में आए कुल मामलों में से 66% केरल से हैं। फिलहाल राज्य में 1.95 लाख मरीज कोरोना का इलाज करा रहे हैं।
वैक्सीनेशन का नया रिकॉर्ड
देश
में शुक्रवार को देश में कोरोना वैक्सीनेशन का नया रिकॉर्ड बना। सरकार के
मुताबिक, भारत में 27 अगस्त एक करोड़ से ज्यादा लोगों को टीके लगाए गए हैं।
16 जनवरी को वैक्सीनेशन ड्राइव की शुरुआत के बाद सबसे ज्यादा लोगों का
टीकाकरण किया गया है।
इसके साथ ही देश में वैक्सीनेशन कवरेज 62 करोड़ को पार कर गया है। हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, सबसे ज्यादा 28.62 लाख टीके लगाकर UP पहले नंबर पर रहा। इसके बाद कर्नाटक में 10.79 लाख और महाराष्ट्र में 9.84 लाख डोज लगाए गए।
देश में कोरोना महामारी आंकड़ों में...
बीते 24 घंटे में कुल नए केस आए: 46,798
बीते 24 घंटे में कुल ठीक हुए: 31,333
बीते 24 घंटे में कुल मौतें: 514
अब तक कुल संक्रमित हो चुके: 3.26 करोड़
अब तक ठीक हुए: 3.18 करोड़
अब तक कुल मौतें: 4.37 लाख
अभी इलाज करा रहे मरीजों की कुल संख्या: 3.53 लाख
केरल
यहां शुक्रवार को 31,801 लोग संक्रमित पाए गए।
18,573 लोग ठीक हुए और 179 लोगों की मौत हो गई। यहां अब तक 39.46 लाख लोग
संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 37.30 लाख लोग ठीक हो चुके हैं,
जबकि 20,313 लोगों की मौत हुई है। फिलहाल 1.95 लाख मरीजों का इलाज चल रहा
है।
महाराष्ट्र
यहां शुक्रवार को 4,654 लोग संक्रमित पाए
गए। 3,301 लोग ठीक हुए और 170 लोगों की मौत हो गई। यहां अब तक 64.47 लाख
लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 62.55 लाख लोग ठीक हो चुके हैं,
जबकि 1.36 लाख लोगों की मौत हुई है। फिलहाल 51,574 मरीजों का इलाज चल रहा
है।
दिल्ली
दिल्ली में शुक्रवार को 61 लोग कोरोना पॉजिटिव
पाए गए। 62 लोग ठीक हुए। अब तक 14.37 लाख लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके
हैं। इनमें 14.12 लाख से ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 25,080 मरीजों
की मौत हो चुकी है। यहां 412 मरीजों का इलाज चल रहा है।
उत्तर प्रदेश
यहां शुक्रवार को 16 लोग संक्रमित पाए
गए। 27 लोग ठीक हुए, जबकि 2 लोगों की मौत हुई। अब तक राज्य में 17.09 लाख
से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 16.86 लाख ठीक हो चुके हैं,
जबकि 22,796 मरीजों ने दम तोड़ दिया। यहां 329 मरीजों का इलाज चल रहा है।
देश में शुक्रवार को कोरोना वैक्सीनेशन का नया रिकॉर्ड बन गया है। सरकार के मुताबिक, भारत में 27 अगस्त एक करोड़ से ज्यादा लोगों को टीके लगाए गए हैं। 16 जनवरी को वैक्सीनेशन ड्राइव की शुरुआत के बाद सबसे ज्यादा लोगों का टीकाकरण है। इसके साथ ही देश में वैक्सीनेशन कवरेज 62 करोड़ को पार कर गया है। हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, सबसे ज्यादा 28.62 लाख टीके लगाकर यूपी पहले नंबर पर रहा। इसके बाद कर्नाटक में 10.79 लाख और महाराष्ट्र में 9.84 लाख डोज लगाए गए।
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने भी सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी। Cowin पोर्टल के मुताबिक, 16 अगस्त को 92 लाख डोज लगे थे। वहीं, 25 अगस्त को 84 लाख लोगों का टीका लगाया गया था। जबकि, 26 अगस्त को देश में 24 घंटे में 79.48 टीके लगाए गए थे। इससे ये आंकड़ा 61.22 करोड़ के पार पहुंच गया था।इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि आज रिकॉर्ड वैक्सीनेशन हुआ है। एक करोड़ की संख्या को पार करना एक अहम उपलब्धि है। टीका लगवाने वालों और इस अभियान को सफल बनाने वालों को बधाई।
वैक्सीनेशन पर बने टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप NTAGI के चीफ डॉ. एनके अरोड़ा ने कहा कि 63,000 वैक्सीनेशन सेंटर के साथ हम कोरोना वैक्सीन के 1 करोड़ से ज्यादा डोज देने में सक्षम हैं। हम एक ही दिन में स्विट्जरलैंड और स्कैंडिनेवियाई देशों (उत्तरी यूरोप के आने वाले देश) का वैक्सीनेशन कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इस मुकाम को हासिल करने के लिए प्राइवेट सेक्टर सहित देश भर के सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स, वैक्सीनेटर, नर्स, डॉक्टर और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स को बधाई। यह देश के हेल्थ सिस्टम के लिए गर्व की बात है। डॉ. अरोड़ा ने कहा कि मुझे यकीन है आने वाले दिनों और हफ्तों में, हम और भी ऊंचे मुकाम हासिल करेंगे।
कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में न सिर्फ केंद्र सरकार की आय बढ़ी है, बल्कि राज्यों की आमदनी में भी खासा इजाफा नजर आ रहा है। राज्यों के कुल खर्च में 76% हिस्सेदारी रखने वाले देश के 16 प्रमुख राज्यों का कर राजस्व बीती तिमाही (अप्रैल-जून) में 44.7% बढ़ा है। राज्यों को सबसे बड़ा फायदा स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन से हुआ है।
वित्तीय सेवा कंपनी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड की ओर से किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक, ओडिशा को छोड़कर सभी राज्यों में इस मद में इजाफा हुआ है। गुजरात और पंजाब में तो 200% बढ़ोतरी दर्ज की गई है। छत्तीसगढ़, हरियाणा, केरल, मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ने पहली तिमाही में अपने पूरे साल के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का एक चौथाई हासिल कर लिया है।
गुजरात-पंजाब की आय तिगुनी हुई, ओडिशा की घटी
विश्लेषण में शामिल राज्य
छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मप्र, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, यूपी व उत्तराखंड।
आय बढ़ी तो खर्च भी बढ़ा, यानी राज्यों में विकास कार्यों में तेजी आई
राजस्व बढ़ने के साथ ही राज्यों के खर्च में भी इजाफा हुआ है। राज्यों का कुल खर्च सालाना आधार पर 18% बढ़ा, जो पिछले साल इसी अवधि में 4.1% कम हुआ था। हालांकि, इस दौरान पूंजीगत खर्च में 133.4% की भारीभरकम बढ़ोतरी हुई। यानी राज्यों ने विकास के कामों में खासी पूंजी खर्च की है। इस खर्च का असर राज्यों के राजकोषीय घाटे के रूप में दिख रहा है। लेकिन, झारखंड और ओडिशा में यह ग्रोथ नहीं दिखी है।
केंद्र-राज्यों का राजस्व 39% घटा था, अब 115% ज्यादा
फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य अर्थशास्त्री निखिल गुप्ता ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकारों की कुल प्राप्तियां पिछले साल 39% घटी थीं, अब सालाना आधार पर 115% अधिक हैं। हालांकि, केंद्र-राज्यों का साझा खर्च 9.4% ही बढ़ा है। प्राप्तियों की तुलना में कम खर्च की वजह से कुल सरकारी राजकोषीय घाटा बीती तिमाही 17.6% रह गया, जो कि पिछले तीन साल की औसत दर 44% से काफी कम है।
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की रिसर्च:डिप्रेशन की दवा 'फ्लूवोक्सामाइन' कोविड होने पर हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा घटाती है,
सस्ती, सुरक्षित और आसानी से उपलब्ध होने वाली डिप्रेशन की दवा से कोविड को गंभीर होने से रोका जा सकता है। यह दावा अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने अपनी हालिया रिसर्च में किया है। शोधकर्ताओं का कहना है, डिप्रेशन में दी जाने वाली दवा 'फ्लूवोक्सामाइन' कोरोना के मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म के असर को कम करती है। साइटोकाइन स्टॉर्म वो स्थिति है जब शरीर को रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम ही नुकसान पहुंचाने लगता है।
कनाडा के मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एडवर्ड मिल्स का कहना है, वर्तमान में कोरोना के मरीजों के लिए चुनिंदा इलाज ही उपलब्ध है। ऐसे में यह दवा मरीजों को राहत दे सकती है।
क्या होता है साइटोमाइन स्टॉर्म, पहले ये समझें
फ्रंटियर्स
इन इम्यूनोलॉजी' जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है, कोरोना से संक्रमण के
बाद कई मरीजों में रोगों से बचाने वाला इम्यून सिस्टम ही बेकाबू होने लगता
है। आसान भाषा में समझें तो इम्यून सिस्टम इतना ओवरएक्टिव हो जाता है कि
वायरस से लड़ने के साथ शरीर की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाने लगता है।
ऐसा होने पर मरीजों के शरीर में खून के थक्के जम सकते हैं और ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। ये दिक्कतें मरीज की हालत को और बिगाड़ती हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे ही साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं।
- अमेरिका, कनाडा और ब्राजील के वैज्ञानिकों ने मिलकर कोरोना के 1,472 मरीजों पर स्टडी की। इन मरीजों को डिप्रेशन की दवा 'फ्लूवोक्सामाइन' दी गई।
- दवा लेने वाले संक्रमित मरीजों में इम्यून सिस्टम के बेकाबू होने के मामलों में 30 फीसदी की कमी आई। शोधकर्ताओं का कहना है, 50 से अधिक उम्र वालों में कोरोना के गंभीर होने का खतरा ज्यादा रहता है।
- फ्लूवोक्सामाइन लेने वाले वाले मरीजों को इमरजेंसी में 6 घंटे से भी कम समय तक रहना पड़ा और ऐसे मरीजों के हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा भी कम पाया गया।
- रिसर्च
के नतीजे बताते हैं, कोविड होने पर फ्लूवोक्सामाइन दवा का इस्तेमाल किया
जा सकता है। यह दवा दुनिया के हर हिस्से में सस्ते दामों पर उपलब्ध है।
बेकाबू इम्यून सिस्टम को रोकने के लिए WHO भी कर रहा ट्रायल
कोविड
के मरीजों में संक्रमण के बाद बेकाबू होने वाले इम्यून सिस्टम को रोकने के
लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल में एक ट्रायल शुरू किया है। यह
ट्रायल मलेरिया, ल्यूकीमिया और ऑटोइम्यून डिजीज जैसे आर्थराइटिस की दवाओं
पर किया जा रहा है।
ट्रायल में शामिल वैज्ञानिकों का मानना है, इन बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली एंटी-इंफ्लेमेट्री दवाएं संक्रमण के बाद बेकाबू होने वाले इम्यून सिस्टम को कंट्रोल कर सकती हैं। इन दवाओं के जरिए कोविड का सस्ता और असरदार इलाज ढूंढने की कोशिश जारी है
अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कोविड के मरीजों पर फेमोटिडीन दवा का ट्रायल कर रहे हैं। यह दवा सीने में जलन होने पर दी जाती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस सस्ती दवा के साथ एस्प्रिन देने से संक्रमित मरीज की हालत में सुधार होता है। साथ ही ये साइटोकाइन स्टॉर्म को रोकने का काम करती है।
- सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी कलौंजी का ट्रायल कोरोना के मरीजों पर कर रही है। वैज्ञानिकों का कहना है, कलौंजी का इस्तेमाल कोविड के इलाज में किया जा सकता है। यह मरीजों के इम्यून सिस्टम को बेकाबू होने से रोकती है और हॉस्पिटल में भर्ती होने का खतरा घटाती है।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने तैयार किया RT-PCR से तेज और सटीक नतीजे देने वाला कोविड टेस्ट, 3 मिनट में पता चलेगा
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने RT PCR टेस्ट का नया विकल्प तैयार किया है। यह अगले तीन महीनों में आम लोगों के लिए उपलब्ध हो सकेगा। RT PCR की तरह इसमें भी स्वैब सैम्पल की जांच की जाएगी और 3 मिनट में पता चल पाएगा इंसान पॉजिटिव है या नहीं।
नया कोविड टेस्ट तैयार करने वाली बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि यह आरटी-पीसीआर टेस्ट से तेज और सटीक नतीजे देता है। शोधकर्ताओं का कहना है, नए टेस्ट का नाम RTF-EXPAR दिया गया है।
ऐसे काम करता है नया कोविड टेस्ट
शोधकर्ताओं
ने एक ऐसी डिवाइस विकसित की है जो कोरोना का उसके जेनेटिक मैटेरियल के
आधार पर पता लगाती है। जांच के लिए गले या नाक से लिए गए सैम्पल को उस
डिवाइस में रखते हैं। यह डिवाइस कोरोना का पता लगाती है। यह जांच
प्रोफेशल्स करते हैं। जांच का यह तरीका ऐसी जगहों के लिए भी सही होगा जहां
समय बहुत कम होता है। जैसे-एयरपोर्ट। ऐसी जगहों पर कोविड की फास्ट
स्क्रीनिंग हो सकेगी।
यूनिवर्सिटीज स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के प्रोफेसर टिम डैफ्रन का कहना है, सैम्पल में वायरल लोड कम होने पर रिजल्ट बताने में 8 मिनट तक का समय लग सकता है। वहीं, वायरल लोड अधिक होने पर 45 सेकंड लगते हैं।
शोधकर्ता प्रोफेसर एंड्रयू बेग्स कहते हैं, खूबियों के मामले नई जांच आरटीपीसीआर से किसी भी स्तर पर कम नहीं है। पॉजिटिव सैम्पल से 89 फीसदी और निगेटिव सैम्पल से 93 फीसदी तक सटीक जानकारी दी की जा सकती है।
शोधकर्ताओं का कहना है, दोनों टेस्ट के रिजल्ट आने में कितना समय लगता है, इसकी जांच की गई। जांच में सामने आया कि नए टेस्ट से जिस नतीजे का रिजल्ट आने में 8 मिनट लगते हैं, उसी सैम्पल का RT PCR जांच से नतीजे आने में 42 मिनट लगा।
शोधकर्ताओं का कहना है, कई बार RT PCR टेस्ट से जांच के नतीजे आने में पूरा दिन लग जाता है क्योंकि सैम्पल को लैब में पहुंचने लम्बा समय लग जाता है। नई जांच से ऑन द स्पॉट नतीजे देखे जा सकते हैं।
कितनी होगी इस जांच की कीमत
नए
कोविड टेस्ट से जांच कराने पर कितना खर्च आएगा, वैज्ञानिकों ने इस बारे
में कोई भी ऑफिशियल जानकारी नहीं जारी की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह
आरटीपीसीआर के मुकाबले सस्ता होगा। जल्द ही इस टेस्ट की जांच ब्रिटेन के
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी करेंगे। इसके बाद यूके में इसका इस्तेमाल
किया जा सकेगा।
अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी CDC की स्टडी:
अगर आपने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई है तो अलर्ट होने की जरूरत है। अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी की हालिया स्टडी कहती है, वैक्सीन न लगवाने वाले लोगों में कोरोना होने का खतरा 29 फीसदी तक ज्यादा है। संक्रमण होने पर इनके हॉस्पिटल में भर्ती होने का रिस्क 29.2 गुना अधिक है।
रिसर्च के मुताबिक, संक्रमण और हॉस्पिटल में भर्ती होने के आंकड़े बताते हैं कि कोविड से बचने के लिए वैक्सीन की सुरक्षा कितनी ज्यादा जरूरी है। वर्तमान में फैल रहे डेल्टा वैरिएंट के दौर में वैक्सीन और भी ज्यादा जरूरी है।
सीडीसी ने लॉस एंजलिस और कैलिफोर्निया के 43,127 संक्रमित मरीजों पर स्टडी की। यह मरीज 1 मई से 25 जुलाई के बीच हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे। रिसर्च कहती है, आमतौर पर कोरोना का संक्रमण होने के 14 दिन के अंदर मरीज हॉस्पिटल में भर्ती होते हैं।
जून में हॉस्पिटल में भर्ती होने वालों के मामले बढ़े
लॉस
एंजलिस और कैलिफोर्निया के ऐसे लोगों के हॉस्पिटल में भर्ती होने के मामले
बढ़े जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली थी। सीडीसी की डायरेक्टर डॉ. रोशेल
वैलेंस्की कहती हैं, आंकड़े बताते हैं कि अगर वैक्सीन नहीं लगवाई तो आप भी
उन लोगों की श्रेणी में आ सकते हैं जो संक्रमण के हाई रिस्क में हैं। कोविड
के रिस्क और परिणामों को हल्के में न लें। इस महामारी से बचने के लिए
वैक्सीन ही सबसे बेहतर उपाय है।
UK के इम्पीरियल कॉलेज ऑफ लंदन और मार्केट रिसर्च फर्म इप्सोस मोरी की स्टडी कहती है, जिन लोगों को वैक्सीन नहीं लगी है, उनकी तुलना में वैक्सीनेटेड लोगों में इन्फेक्ट होने का जोखिम 60% कम हो जाता है। इसमें एसिम्प्टोमेटिक इन्फेक्शन शामिल है।
वैक्सीन कितनी असरदार है,
- वैक्सीन कितनी जरूरी है, इसका जवाब पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (PHE) का डेटा देता है। जिन्हें दोनों डोज लगे हैं, उन्हें हॉस्पिटलाइजेशन से बचाने में फाइजर की वैक्सीन 96% और एस्ट्राजेनेका (भारत में कोवीशील्ड) 92% इफेक्टिव साबित हुई है।
- PHE का अनुमान है कि वैक्सीनेशन प्रोग्राम की वजह से इंग्लैंड में 2.2 करोड़ इन्फेक्शन रोकने में कामयाबी मिली है। यह भी कह सकते हैं कि वैक्सीन ने 52,600 हॉस्पिटलाइजेशन और 35,200 से 60 हजार मौतों को बचाया है।
- 21 जून से 19 जुलाई के बीच का PHE हॉस्पिटलाइजेशन डेटा कहता है कि 1,788 लोगों को डेल्टा वैरिएंट से इन्फेक्शन के बाद हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। इनमें से 970 (54.3%) को वैक्सीन नहीं लगी थी। वहीं, 530 (29.6%) को वैक्सीन के दोनों डोज लगे थे।
सस्ते दाम पर वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए वैज्ञानिक 'मॉलिक्युलर फार्मिंग' का तरीका अपना रहे हैं।
इस तकनीक का इस्तेमाल करके कोविड वैक्सीन तैयार की गई है। इसे CoVLP नाम दिया गया है। इसके अलावा एक फ्लू वैक्सीन भी बनाई गई है।
वैज्ञानिकों का दावा है, इस तकनीक से तैयार वैक्सीन की कीमत काफी कम होगी और इसे अलग-अलग लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक लगाया जा सकता है। जानी मानी ब्रिटिश फार्मा कंपनी ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन और बायोटेक कम्पनी मेडिकागो ने मिलकर इसे तैयार किया है।
इतने फायदे का दावा करने वाली मॉलिक्यूलर फार्मिंग क्या है, इसके फायदे क्या हैं और इसके जरिए कैसे बनाई गई कोविड वैक्सीन CoVLP, जानिए इन सवालों के जवाब..
सबसे पहले जानिए, क्या है मॉलिक्युलर फार्मिंग
इस
तकनीक से वैक्सीन बनाने के लिए सबसे पहले वैज्ञानिक लैब में वायरस के
जेनेटिक मैटेरियल को तैयार करते हैं, फिर उसे एक पौधे में इंजेक्ट करते
हैं। इस तरह वायरस का जेनेटिक मैटेरियल पूरे पौधे में पहुंच जाता है। पौधा
बड़ा होने पर इसकी पत्तियों को तोड़कर एक्सट्रैक्ट करते हैं। यानी एक तरह
से इसका रस निकाल लेते हैं। एक्सट्रैक्ट को फिल्टर करने के बाद इससे
वैक्सीन तैयार की जाती है।
CoVLP क्यों अलग है और कैसे तैयार की गई
CoVLP
एक वायरस-लाइक-पार्टिकल वैक्सीन है। यानी इसे ऐसे पार्टिकल से तैयार किया
गया है जो हर मायने में वायरस जैसा होता है, लेकिन संक्रमित नहीं करता।
आसान भाषा में समझें तो वैक्सीन के जरिए जब वायरस-लाइक-पार्टिकल शरीर में
पहुंचेगा तो कोई नुकसान तो नहीं होगा लेकिन शरीर बड़ी संख्या में इसके
खिलाफ एंटीबॉडीज बनाने लगेगा।
अगर कुछ महीने बाद कोरोनावायरस शरीर को संक्रमित करता है तो पहले से तैयार एंटीबॉडीज इसे मार देंगी। कंपनी का दावा है कि इस टेक्नोलॉजी से तैयार वैक्सीन बेहद सस्ती, कम समय और कम जगह में तैयार होगी।
CoVLP कैसे तैयार की गई, अब ये जानिए। वायरस-लाइक-पार्टिकल तैयार करने के बाद इसे निकोटियाना बेंथामियाना नाम के पौधे में पहुंचाया। इस तरह पौधे के हर हिस्से वायरस का जेनेटिक मैटेरियल पहुंचा। पौधा बढ़ने के साथ इनमें यह मैटेरियल भी बढ़ता है। कुछ समय बाद इसकी पत्तियों को तोड़ने के बाद एक्ट्रैक्ट किया गया और इस मैटेरियल से वैक्सीन तैयार की गई।
जब लैब में पार्टिकल बना सकते हैं तो पौधे की क्या जरूरत?
एक
सवाल उठता है कि जब लैब में पहले ही वायरस-लाइक-पार्टिकल बनाया जा सकता है
तो पौधों की जरूरत ही क्या है। इसे ऐसे समझिए। वायरस-लाइक-पार्टिकल वाली
वैक्सीन में वायरस जैसे पार्टिकल्स को भारी संख्या में बनाने के लिए पौधों
को बायो-रिएक्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह वैक्सीन बनाने
का कच्चा माल यानी एंटीजन न केवल कम समय में बल्कि बेहद कम लागत से तैयार
हो जाता है। इससे वैक्सीन भी सस्ती और तेजी से तैयार की जा सकती है।
इसलिए है सस्ती और असरदार
प्लांट
बेस्ड वैक्सीन पर काम करने वाले फॉस्थर-वोवेंडो और कोविंगर का कहना है, इस
तरह की वैक्सीन तैयार करने में प्रोसेसिंग की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए इसे
बनाने में समय कम लगता है और लागत भी कम आती है।