सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल- 3 की मौत 4 की आंखों की रोशनी गई,
सैनेटाइजर का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करना जानलेवा साबित हो सकता है। मेयो क्लीनिक के एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल करते हैं आंखों की रोशनी जाने के साथ मौत भी हो सकती है। इसका सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को है। सैनेटाइजर में मौजूद जहरीले केमिकल स्किन के जरिए बच्चों के शरीर में पहुंच सकते हैं।
इसकी वजह भी जानिए
- हैंड सैनेटाइजर में तीन तरह के अल्कोहल इस्तेमाल किए जाते हैं। इनमें से एक है, मेथेनॉल। इसका अधिक इस्तेमाल करने पर आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है या मौत भी हो सकती है।
- अमेरिका में मेथेनॉल वाले हैंड सैनेटाइजर बनाने पर बैन लगा दिया गया है। मेथेनॉल की जगह एथेनॉल और आइसोप्रोपेनॉल को सुरक्षित विकल्प माना गया है। वहीं, कई देशों में इस्तेमाल हो रहे सैनेटाइजर में मेथेनॉल मौजूद है।
- बच्चों की स्किन के जरिए मेथेनॉल शरीर में पहुंचकर लम्बे समय सेहत पर बुरा असर डालता है। डॉक्टर्स का कहना है, हैंड सैनेटाइजर का इस्तेमाल तभी करें जब वाकई में इसकी जरूरत हो। इसे रोजाना इस्तेमाल करने की जगह, कभी-कभार इस्तेमाल करें वो भी कम मात्रा में।
मेक्सिको और एरिजोना में आए चौंकाने वाले मामले
मेयो
क्लीनिक के संक्रमक रोग विशेषज्ञ डॉ. ग्रेगोरी पोलैंड का कहना है, बच्चे
सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल करते हैं तो उनकी स्किन मेथेनॉल को एब्जॉर्ब कर
लेती है। अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी को पिछले साल मेक्सिको और
एरिजोना में मेथेनॉल पॉइजनिंग के 15 मामले मिले थे। इन सभी मामलों में हैंड
सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल किया गया था।
15 मामलों में से 4 की मौत हो गई थी। 3 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। विशेषज्ञ कहते हैं, हैंड सैनेटाइजर के ओवरयूज से बचें।
स्किन के जरिए कैसे शरीर में पहुंचता है, ऐसे समझें
ब्रिघम
एंड वुमेन्स हॉस्पिटल के डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. अबिगैल वॉल्डमैन का कहना है,
हमारी स्किन ईटों की दीवार की तरह है। हैंड सैनेटाइजर हमें वायरस से बचाता
है, लेकिन कई बार ये उसी ईटों की दीवार में सुराग कर देता है। इस तरह यह
शरीर में पहुंचता है। अल्कोहल की मात्रा अधिक होने के कारण यह स्किन एलर्जी
की वजह भी बन सकता है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सैनेटाइजर का अधिक इस्तेमाल करने पर बैक्टीरिया रेसिस्टेंस विकसित कर लेती है, नतीजा, ये उन पर बेअसर साबित होता है। अगर आप घर या बाथरूम में हैं तो हैंड सैनेटाइजर की जगह साबुन-पानी से हाथ धोएं। साबुन हाथों से चिपचिपापन खत्म करता है, इसलिए वायरस स्किन पर नहीं टिक पाता।
बढ़ रहा सैनेटाइजर का इस्तेमाल
महामारी
की शुरुआत से ही अमेरिका में लोगों ने हैंड सैनेटाइजर काफी मात्रा में
खरीदा। बॉस्टन ग्लोब की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल हैंड सैनेटाइजर की
बिक्री 620 गुना तक बढ़ी। अमेरिका में हैंड सेनेटाइजर के सबसे बड़े ब्रांड
प्यूरेल ने इसकी मांग को पूरा करने के लिए प्रोडक्शन कैपेसिटी को बढ़ाया।
महामारी के दौरान कई जगहों पर सैनेटाइजर की कमी हुई तो लोगों ने ऑनलाइन
ऑर्डर किए।
स्मार्टफोन की स्क्रीन से सैम्पल लेकर कोविड टेस्ट किया जा सकेगा,
यूनिवर्सिटी लंदन और डायग्नोसिस बायोटेक स्टार्टअप ने मिलकर तैयार की जांच-
लंदन के वैज्ञानिकों ने कोरोना की जांच का नया तरीका ढूंढा है। इसका नाम फोन स्क्रीन टेस्टिंग रखा गया है। अब जांच के लिए स्वैब स्टिक से नाक या गले से सैम्पल लेने की जरूरत नहीं। स्मार्टफोन की स्क्रीन से सैम्पल लिया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि फोन स्क्रीन टेस्टिंग से जांच के नतीजे आरटी-पीसीआर की तरह ही सटीक आते हैं और खर्च भी कम आता है।
शोधकर्ता डॉ. रोड्रिगो यूंग कहते हैं, इस जांच को यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और डायग्नोसिस बायोटेक स्टार्टअप के साथ मिलकर तैयार किया है।
स्मार्टफोन को ही क्यों चुना
जांच
करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है, जब कोई इंसान खांसता है या बात करता है
तो मुंह से ड्रॉप्लेट्स यानी लार की बूंदें निकलकर आसपास की सतह पर इकट्ठा
हो जाती हैं। कोरोना से संक्रमित इंसान के ड्रॉप्लेट्स में वायरस के कण
होते हैं।
मुंह से निकलने वाले ये ड्रॉप्लेट्स स्मार्टफोन की स्क्रीन पर इकट्ठा हो जाते हैं। स्वैब स्टिक की मदद से स्क्रीन पर मौजूद वायरस के कणों का सैम्पल लेकर इसे सेलाइन वॉटर में रखते हैं। फिर इसे लैब भेज दिया जाता है।
81 से 100 फीसदी तक सटीक नतीजे
वैज्ञानिकों
का दावा है कि फोन स्क्रीन टेस्टिंग से 81 से 100 फीसदी तक सटीक नतीजे
मिलते हैं। रिसर्च के दौरान 540 लोगों पर हुई जांच में यह साबित भी हुआ है।
इन मरीजों का आरटी-पीसीआर और फोन स्क्रीन टेस्ट हुआ। 540 में से 51 लोग
संक्रमित पाए गए। इतने ही मामले नए टेस्ट में भी सामने आए।
शोधकर्ताओं का कहना है, फोन स्क्रीन टेस्ट निगेटिव मामलों के परिणाम 98.8 फीसदी तक सटीक बताता है। जांच के दौरान मात्र 6 सैम्पल ही पॉजिटिव बताए जो स्वैब टेस्ट में निगेटिव साबित हुए।
इसलिए भी काम है नया टेस्ट
शोधकर्ताओं
का कहना है, अधिक आबादी वाली जगहों पर कोविड जांच का यह नया विकल्प साबित
हो सकता है। शोधकर्ता डॉ. यूंग कहते हैं, कई लोग संक्रमित होते हैं और
उनमें लक्षण भी नहीं दिखते। इनसे अंजाने में वायरस फैलता है। जांच के इस
तरीके से भी बिना मरीज को परेशान किए बगैर वायरस का पता लगाया जा सकता है
क्योंकि आरटी-पीसीआर जांच के दौरान मरीज सहज महसूस नहीं करते।
कोरोना का सबसे चौंकाने वाला मामला:
दक्षिण अफ्रीका में कोरोना का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एचआईवी संक्रमित 36 वर्षीय महिला के शरीर में 216 दिन तक कोरोनावायरस मौजूद रहा। महिला के शरीर में वायरस ने 32 बार अपना रूप (म्यूटेशन) बदला। यह खुलासा मेडआरएक्स-4 जर्नल में पब्लिश एक रिसर्च में हुआ है।
रिसर्च करने वाले डरबन के क्वाजूलू-नेटल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है, जांच के दौरान सामने आया कि महिला के शरीर में 32 बार वायरस ने अपना रूप बदला है। इसे दो हिस्से में बांट कर समझा जा सकता है।
पहला, 13 बार कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव हुआ। स्पाइक प्रोटीन कोरोनावायरस का एक ऐसा अहम हिस्सा जिससे वायरस अपना बचाव करता है।
दूसरा, 19 ऐसे बदलाव थे, जिससे वायरस के व्यवहार में बदलने की क्षमता का पता चला। संक्रमित महिला में मौजूद वायरस ने दूसरे कितने लोगों को रोगी बनाया, इसकी जानकारी अब तक सामने नहीं आ पाई है।
ऐसे सामने आया मामला
एचआईवी
पीड़ितों में कोरोना से लड़ने के लिए उनका इम्यून सिस्टम कितना तैयार है,
इसकी जांच करने के लिए शोधकर्ताओं ने 300 ऐसी महिलाओं को इकट्ठा किया।
शोधकर्ता तुलियो डि ओलिवेरा का कहना है, मरीज में वायरस के 32 बार बदलने का
मामला सामने नहीं आ पाता क्योंकि मरीज में मामूली लक्षण दिख रहे थे। मामला
सामने आने की वजह है वो रिसर्च, जिसमें 300 एचआईवी पीड़ितों ने हिस्सा
लिया। जांच के बाद चौंकाने वाला मामला सामने आया।
एचआईवी संक्रमितों में खतरा ज्यादा
शोधकर्ता
ओलिवेरा का कहना है, एचआईवी से जूझ रहे मरीजों की रोगों से लड़ने की
क्षमता कम होती है। इसलिए इनमें संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है। एक बार
संक्रमण हुआ तो वायरस का असर भी लंबे तक रहता है। दक्षिण अफ्रीका की महिला
में सामने आया मामला, इसका एक प्रमाण है।
अलर्ट करने वाली रिसर्च
रिसर्च
रिपोर्ट कहती है, यह मामला अलर्ट करने वाला है क्योंकि एचआईवी पीड़ितों को
कोरोना आसानी से संक्रमित कर सकता है और अपना स्वरूप भी बदल सकता है।
इसलिए रिसर्च के नतीजे महामारी को रोकने में मददगार साबित होंगे। एचआईवी के
सर्वाधिक मामलों वाले देशों में वायरस को रोकने के लिए रणनीति को और बेहतर
बनाने की जरूरत है।